लखनऊ : केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, विशाल खंड, गोमती नगर में चल रही राज्य स्तरीय खादी और पीएमईजीपी प्रदर्शनी की आठवीं सांस्कृतिक संध्या में कविताओं, सदाबहार नग्मों और नृत्य ने दर्शकों का दिल जीत लिया।
इस सांस्कृतिक आयोजन ने श्रोताओं को रोमांचित किया और खादी के संदेश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। कार्यक्रम का शुभारंभ खादी और ग्रामोद्योग आयोग के राज्य निदेशक डॉ. नितेश धवन ने दीप प्रज्वलन से किया।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “खादी केवल वस्त्र नहीं, बल्कि एक विचार है। यह आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का प्रतीक है।” उनकी प्रेरणादायक बातें सभी के दिलों को छू गईं।
गणेश वंदना से कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए अंकिता सिंह ने अपनी खनकती आवाज में “हाले दिल” और “हमको हमी से चुरा लो” जैसे गीतों से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
इसके बाद अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में शरद कुमार पाण्डेय ‘शशांक’ ने अपनी ओजस्वी पंक्तियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उनकी कविता “लगता कि रावण का अंत हो गया है,
साधु-संत राम राज्य का बिगुल बजा गए” ने सभा में जोश भर दिया। मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने अपनी कविताओं से देशभक्ति का जज्बा जगाया। उनकी पंक्तियां “जो रवानी में जोश न भरे, वो रवानी कैसी” ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
डॉ. रेनु द्विवेदी ने “झांसी वाली रानी” की वीरता पर आधारित कविताओं से गर्व का अहसास कराया। अनिल ‘अनाड़ी’ और प्रवीण कुमार की कविताओं ने सामाजिक और मानवीय पहलुओं को उजागर किया, जिन पर दर्शकों की खूब तालियां बजीं।
सांस्कृतिक संध्या में संगीत और नृत्य का भी खासा आकर्षण रहा। शुभम गौतम के “पटना से बैदा बुलाई दा” गीत और राखी शुक्ला के “शरारा-शरारा” पर किए गए शानदार नृत्य ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।
अंकिता, प्रियंका दीक्षित, अंशुमन मौर्य और रिनी मौर्य ने अपने गीतों से समा बांधा। अंत में, अक्षत चतुर्वेदी की मिमिक्री ने हास्य का तड़का लगाते हुए सभी को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर दिया।
सांस्कृतिक संध्या ने खादी के संदेश को मनोरंजन और प्रेरणा के माध्यम से प्रस्तुत कर एक अनूठा अनुभव दिया। इस आयोजन ने न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि खादी के प्रति नई सोच और जुड़ाव भी पैदा किया।