bhopal , जिसे झीलों की नगरी के नाम से जाना जाता है, अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। इस शहर का नाम उसके संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान के कारण इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
साहित्य, शायरी और कला के क्षेत्र में भोपाल का अद्वितीय योगदान रहा है। यहां के लोगों ने साहित्य, संगीत और कला के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा से अपनी पहचान बनाई है।
इसमें सबसे बड़ा नाम शायर-ए-मशरिक डॉ. अल्लामा इकबाल का है, जिनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य और संस्कृति में अमिट छाप छोड़ी। अल्लामा इकबाल की कविताएं, जिनमें भगवान राम को “इमाम-ए-हिंद” के रूप में प्रस्तुत किया गया, भारतीय समाज में उनकी गहरी समझ और संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।
लेकिन दुख की बात है कि आज उनके नाम पर बने इकबाल मैदान को उपेक्षित छोड़ दिया गया है। इसी स्थिति को बदलने और इस सांस्कृतिक स्थल को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में भोपाल में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई।
यह बैठक “विरासत भोपाल” संगठन द्वारा कमला पार्क स्थित दुर्रानी हॉल में आयोजित की गई। इसमें विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने भाग लिया और एक स्वर में भोपाल की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का आह्वान किया।
बैठक में उपस्थित पूर्व डीजीपी एमडब्ल्यू अंसारी ने शहर के ऐतिहासिक स्थलों की जर्जर स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ताज-उल-मसाजिद, सदर मंजिल, शाहजहानाबाद गेट, गोलघर, जामा मस्जिद और भोती मस्जिद जैसे स्थल आज उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन को इन स्थलों के संरक्षण और पुनरुद्धार की ओर ध्यान देना चाहिए। उनका कहना था कि सिर्फ नाम बदलने से शहर की पहचान नहीं बनती, बल्कि इसके ऐतिहासिक महत्व को सहेजने की आवश्यकता होती है।
इस बैठक में यह भी चर्चा हुई कि विगत वर्षों में भोपाल सहित कई शहरों में ऐतिहासिक स्थलों और सड़कों के नाम बदले गए हैं। जैसे इलाहाबाद को प्रयागराज और होशंगाबाद को नर्मदापुरम नाम दिया गया।
इसी तरह भोपाल में हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया और इस्लामनगर को जगदीशपुर के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
वक्ताओं ने इस प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहा कि नाम बदलने की बजाय इन स्थलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
बैठक में अधिवक्ता सैयद साजिद अली ने इकबाल मैदान पर लगे प्रतिबंध को हटाने और इसे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों के लिए फिर से खोलने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि यह स्थल शहरवासियों के लिए सांस्कृतिक गर्व का केंद्र बन सकता है। बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि बरकतउल्ला विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए और भोपाल में उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं के अध्ययन के लिए एक विशेष विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए।
इस बैठक में भाग लेने वाले विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों ने गंगा-जमुनी तहजीब का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि वे भोपाल की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और इसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए मिलकर प्रयास करेंगे। यह पहल न केवल भोपाल के लिए बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है।