ब्यूरो चीफ आर एल पांडेय
लखनऊ । मैक्स हॉस्पिटल, लखनऊ ने उत्तर प्रदेश के किसी निजी अस्पताल में पहली बार सफलतापूर्वक दोनों कानों का बाईलेटरल कॉक्लियर इम्प्लांट किया है। यह सर्जरी 4.5 साल के एक बच्चे पर की गई, जो जन्म से ही सुनने में असमर्थ था। ,, , जब इम्प्लांट्स सक्रिय हुए, तो बच्चे ने पहली बार आवाज सुनी, जिससे उसके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। यह पल उनके लिए अत्यंत भावुक और अविस्मरणीय था।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट और ईएनटी विभाग की यूनिट हेड, डॉ. सोनम राठी ने कहा, “यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि हमने लखनऊ में पहली बार दोनों कानों का कॉक्लियर इम्प्लांट किया। जन्मजात बहरेपन को समय पर ठीक न करने से बच्चे के विकास में गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। समय पर उपचार बहुत महत्वपूर्ण है ताकि बच्चे का विकास सामान्य तरीके से हो सके।”
सर्जरी अगस्त के अंत में हुई, जो लगभग 7 घंटे तक चली। डॉक्टरों ने परिवार से चर्चा के बाद एक साथ दोनों कानों पर ऑपरेशन करने का निर्णय लिया।
डॉ. राठी ने आगे बताया, “कॉक्लियर इम्प्लांट्स जन्मजात बहरेपन वाले बच्चों के इलाज में अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। जिन बच्चों में जल्दी इम्प्लांट्स करवाए जाते हैं, वे सामान्य बच्चों की तरह बोल सकते हैं और उनकी शिक्षा में कोई बाधा नहीं आती।
cochlear implant एक छोटा electronic उपकरण है, जो गंभीर श्रवण हानि या बहरेपन से पीड़ित व्यक्तियों की सुनने की क्षमता को बहाल करने के लिए Design किया गया है। इसमें दो भाग होते हैं—एक हिस्सा कान के पीछे होता है और दूसरा हिस्सा त्वचा के नीचे सर्जरी के जरिए लगाया जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी जन्मजात बहरेपन वाले मरीजों और उन लोगों के लिए प्रभावी होती है, जिनकी सुनने की क्षमता विभिन्न कारणों से प्रभावित हुई हो। ,
मैक्स हॉस्पिटल की इस सफलता ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई आशा जगाई है। यह न केवल कॉक्लियर इम्प्लांट के महत्व को उजागर करता है, बल्कि उत्तर प्रदेश में उन्नत चिकित्सा तकनीकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
मैक्स हेल्थकेयर, जो भारत की सबसे बड़ी अस्पताल चेन में से एक है, स्वास्थ्य सेवाओं के उच्चतम मानकों के लिए प्रतिबद्ध है। इसके 20 हेल्थकेयर सेंटर का नेटवर्क उत्तर भारत में फैला हुआ है, जिसमें लखनऊ भी शामिल है। ,यह सफलता उन सभी परिवारों के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो जन्मजात बहरेपन से जूझ रहे बच्चों के लिए चिकित्सा समाधान की तलाश में हैं।